एक जाग्रत महायोग परम्परा: स्वामी बुद्धपुरी जी
आदि गु्रु परमेश्वर नामक गंगोत्री से प्रादुर्भूत ज्ञान-योग-भक्ति की साधनरूप गंगा में गोता लगाने के ही विभिन्न घाट हैं, उस अमृतमयी सरिता का सदा-सर्वदा रसास्वादन करने वाले, नाना नामरूपों में लीलारत्, विभिन्न संत-महापु्रुष। उनकी जीवनी अथवा विशेषत: उनकी आज्ञायों का श्रवण-मनन-निदिध्यासन पूर्वक पालन ही है, घाट पर से साधना-गंगा की मध्य-धारा में प्रवेश की कूंजी।
इसी प्रकार, महायोग की साधन-गंगा में प्रवेश के तीन घाट – मृत्युंजयी महायोगी स्वामी मेवापु्री जी, युगावतार काली कम्बली वाले स्वामी देवपुरी जी और करुणा वरुणालय परमहंस स्वामी दयालुपुरी जी की कतिपय जीवन घटनाओं का चित्रण, घटनाओं की साधनोपयोगी व्याख्या के साथ, इस लघु पुस्तक में किया गया है। विषय सामग्री का स्त्रोत, आश्रम से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘कुण्ड अग्नि शिखा’ है, जहां पिछले 13-14 वर्षों से महाराज श्री सन्तों-महापुरुर्षों के साधना रहस्यों की चर्चा, उनके जीवन प्रसंगों के आलोक में करते ही रहे हैं। वर्तमान पुस्तक के संकलन हेतु उन्होंने और भी नयी सामग्री उपलब्ध करवाई जिसका समावेश पुस्तक में किया गया है। फिर भी समयाभाव के कारण अन्य अनेक घटनाओं का संकलन इस बार पुस्तक में नहीं किया जा सका है; इस कमी को भविष्य में सुधारने का विचार है।
जिज्ञासु-पाठकों की सेवा में यह पुस्तक इस आशा के साथ प्रस्तुत है कि इसके चरित्र नायकों के जीवन में चमकते विवेक-वैराग्य, तप-त्याग-तितिक्षा, सेवा-अभ्यास के सूर्य के कुछ प्रकाश-कण हमारे जीवन में उतरकर उसे भी प्रकाशित करेंगे।