Sri Yantra Book

 

चमत्‍कारी श्री यंत्र साधना और त्रिपुर शिवा पीठम्‍: स्‍वामी बुद्धपुरी जी

महायोगी स्‍वामी बुद्धपुरी जी ने शास्‍त्रों में वर्णित श्री विद्या के रहस्‍यों को साधना द्वारा अनुभव किया और उन्‍हीं को जिज्ञासुओं के लिए इस पुस्‍तक में लिपिबद्ध किया गया है। इस पुस्‍त‍क में इन सिद्धांतों को अत्‍यन्‍त सरल एवं सहज रूप में प्रस्‍तुत किया गया है जिसका अनुसरण करके साधक महायोग के अग्‍निपथ पर सहज ही आरूढ़ हो सकती है। महाराज श्री ने अत्‍यन्‍त सरल तरीके से श्रीयंत्र-निर्माण की जटिल विधि को प्रारंभिक साधक के लिए भी सहज बना दिया है। यंत्रराज की उपा‍सना की विधियों की सांगोपांग विवेचना के द्वारा तथा मंत्रों की सरल एवं क्रमिक प्रस्‍तुति से इस जटिल उपासना की विधि को सामान्‍य साधक के लिए भी अत्‍यन्‍त रोचक एवं सरल बना दिया है।

श्रीविद्या का यंत्र या श्रीचक्र जो कि त्रिपुरा या त्रिपुरशिवा (परमेश्‍वरी) के आराधना का स्‍थान है, उ‍से ही ‘त्रिपुर शिवा पीठम्’ का नाम देकर श्रीमहाराजजी ने मल्‍लके आश्रम में एक ध्‍यान मंदिर का निर्माण करवाया है और इस ध्‍यान मंदिर ‘त्रिपुर शिवा पीठम्’ का लोकार्पण विजयदशमी (3 अक्‍टूबर, 2014) को संपन्‍न हुआ। साकाररूप में श्रीयंत्र की आकृति का यह मंदिर अपनी निर्माणकला का एक अनूठा प्रतिरूप है और शायद आज के भारतवर्ष में यह अपने प्रकार का एकमात्र मंदिर है, जिसके भीतर विश्‍व के विशालतम स्‍फटिक श्रीयंत्र की प्राण-प्रतिष्‍ठित रूप से स्‍‍थापना की गई है। यह पुस्‍तक इसी मंदिर के निर्माण-विज्ञान के साथ-साथ उपासना-विज्ञान को सामान्‍यजन को समझाने के लिए प्रस्‍तुत हुई है। श्रीमहाराजजी के साधनामय चिंतन का साक्षात् प्रतिरूप यह मंदिर, साधकों की आध्‍यात्‍मिक यात्रा और लक्ष्‍य की प्राप्‍ति का साधन बने ऐसी माँ त्रिपुरशिवा से प्रार्थना है।