यह पुस्तक योग–साधना (आसन–प्राणायाम) विषयक कोई नया दृष्टिकोण नहीं प्रतिपादित कर रही है, बल्कि यह तो हमें उससे भी आवश्यक तथ्य से परिचित कराता है, वह है जीवनदायी श्वास का विज्ञान और उसे शरीर में पूर्णतया भरने की कला। क्योंकि अधूरा और उथला श्वास न केवल हमारी जीवनी–शक्ति में कमी लाता है बल्कि Anti-oxidants की मात्रा घटाकर Free Radicals के रूप में शरीर में जहर भी जमा करता जाता है। संजीवनी क्रिया उक्त Free Radicals को अवशोषित कर इन सारी समस्याओं का सहज ही समाधान करती है और हमारे शरीर को निरोग तथा दीर्घायु बनाने में अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध होती है।
यह मात्रा आश्चर्य ही नहीं दु:ख की भी बात है कि लोग जीवन की समस्त क्रियाकलापों के आधारभूत श्वास विज्ञान के बारे में शिक्षा प्राप्त करने का तनिक भी प्रयास नहीं करते और अनजाने ही जीवनपर्यन्त अधूरा तथा मृत्युग्रसित श्वास लेते रहते हैं। यह पुस्तक इस दिशा में प्रथम प्रामाणिक प्रयास है जो लेखक की 40 वर्षों की साधना और लाखों लोगों पर किये गये प्रायोगिक अनुभवों पर आधारित है।

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