आधुनिक विज्ञान की खोजों और प्राचीन योग शास्त्रों का यह स्पष्ट सिद्धान्त है कि सूर्य की किरणें अनेक शारीरिक तथा मानसिक रोगों के निवारण के साथ-साथ सम्पूर्ण स्वास्थ्य और दीर्घायु भी प्रदान करती हैं। सूर्य किरणों के विधिवत् सेवन से ऊर्जा, स्फूर्ति, शारीरिक तथा मानसिक शक्ति एवं रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है। लाखों लोगों के अनुभव से यह भी सिद्ध हो चुका है कि ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’, सूर्य किरणों के सेवन की सबसे प्रभावशाली तथा सुरक्षित विधि है। इसकी साधना विधि भी बहुत सरल है और दो-तीन बार समूह में अभ्यास करने से अथवा पुस्तकों आदि के माध्यम से भी आसानी से सीखी जा सकती है।
इस लेख माला के पहले भाग में गुरुदेव ने रोगों के कारण तथा निवारण के विषय में विस्तृत चर्चा करते हुये यह बताया था कि शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता के मूल में है तैजस तत्व। यदि शरीर में तैजस तत्व को बढ़ाया जाये तो रोगों तथा कोरोना जैसे संक्रमण को तुरन्त रोका जा सकता है। ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’ तैजस तत्व बढ़ाने का सर्वोत्तम उपाय है, इसलिये इस साधना को प्रारम्भ करने की सरल विधि भी बताई थी। इस बीच अखबारों तथा सोशल मीडिया पर अनेक डॉक्टरों के भी इस प्रकार के वक्तव्य आ रहे हैं कि शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने के लिये विटामिन डी सर्वाधिक उपयोगी है और यह मुख्य रूप से सूर्य किरणों से ही प्राप्त होता है। इस सूचना के आधार पर अनेक लोग यह कहने लगे हैं कि धूप में कुछ घण्टे घूमने या सूर्य स्नान करने के द्वारा कोरोना से बचा जा सकता है किन्तु वास्तविकता कुछ और ही है।
दरअसल, सूर्य किरणों को शरीर में ग्रहण करने का मुख्य द्वार हैं हमारी आँखें। त्वचा के द्वारा हम अधिक किरणों को शोषित नहीं कर सकते बल्कि एक सीमा के बाद तो इन किरणों से त्वचा जलने सी लग जाती है, यदि नेत्रों का सम्बन्ध सही विधि से सूर्य के साथ जुड़ा हुआ न हो तो। इससे अलावा एक बात यह भी है कि सूर्य किरणों को शरीर की सूक्ष्मता में ले जाने अर्थात् हजम करने के लिये मन का शान्त और अन्तर्मुख होना भी बहुत जरूरी है। ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’ एक विशेष ध्यान की प्रक्रिया है, अत: उसमें सहज ही मन अन्तर्मुख हो जाता है और इस पूरी प्रक्रिया में नेत्रों का सम्बन्ध (उन्हें बन्द रखते हुये) सूर्य के साथ सीधा बना कर ही रखा जाता है। इसलिये इसके द्वारा शीघ्र लाभ मिलता है और किसी प्रकार की हानि नहीं होती।
दूसरी ओर धूप में घूमने-फिरने से तो बहुत थोड़ी मात्रा में ही किरणें शोषित हो पाती हैं। यह तो सभी अनुभव करते ही हैं कि धूप में अधिक घूमने से सिर भारी हो जाता है, इसका कारण यही है कि किरणें ऊपर ही ऊपर एकत्र हो रही हैं, शरीर के भीतर प्रवेश नहीं कर पा रहीं।
सूर्य स्नान में तो समस्या और गम्भीर हो जाती है क्योंकि उसमें प्राय: लोग चश्मा या हैट आदि लगाकर सूर्य के साथ आँखों का सम्बन्ध तो तोड़ ही लेते हैं, ऊपर से त्वचा पर भी सनस्क्रीन लगाकर वहाँ से भी सूर्य किरणों के हजम होने का रास्ता बन्द सा कर देते हैं। इसके साथ-साथ मन तो बहिर्मुख ही रहता है। यही कारण है कि सूर्य स्नान से कुछ लाभ भले ही होता हो किन्तु प्रतिवर्ष हजारों लोग सूर्य स्नान के द्वारा स्वास्थ्य का लाभ करने के स्थान पर हानि कर बैठते हैं। ऐसे ही लोग सूर्य को दोष देते हैं। याद रखें, सूर्य किरणों को शरीर में प्रवेश कराने का मुख्य द्वार हैं आँखें और सहयोगी है अन्तर्मुखी मन, यद्यपि त्वचा के द्वारा भी कुछ अंश में किरणें अन्दर जाती ही हैं। इसीलिये ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’ के द्वारा बहुत लाभकारी परिणाम प्राप्त होते हैं और वह भी बहुत शीघ्र।
कुछ लोग सूर्य नमस्कार को भी सूर्य क्रिया के रूप में देखते हैं किन्तु वह तो मात्र कुछ आसनों का क्रम है, जिन्हें हम कहीं भी और कभी भी कर सकते हैं। निस्सन्देह उसके अनेक लाभ हैं किन्तु वह लाभ अन्य आसनों या शारीरिक व्यायामों जैसे ही हैं, उसमें सूर्य किरणों से प्राप्त होने वाला महान लाभ नहीं मिलता।
भारतवासी तो प्राय: धर्म और विज्ञान के प्रति जागरुक लोग हैं, उन्हें तो यह पता ही है कि प्राचीन सनातन परम्परा में प्रचलित मुख्य साधनायें त्रिकाल सन्ध्या और यज्ञ ही थे। इन साधनाओं के द्वारा ही ऋषि-मुनि पूर्णत: स्वस्थ, शारीरिक तथा मानसिक शक्ति से सम्पन्न एवं दीर्घायु होते थे। ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’ त्रिकाल सन्ध्या के सिद्धान्त पर ही आधारित है। अत: आप सभी से निवेदन है कि इस साधना का पूरा लाभ लेकर अपने आप को इस कोरोना संकट काल में सुरक्षित एवं स्वस्थ रखें। अपने बन्धु-बान्धवों तथा इष्ट मित्रों को भी यह सभी लेख भेजें तथा इस साधना से परिचित करायें, जिससे कि वह भी इसका लाभ ले सकें।