एक पुरानी कहावत है ‘Prevention is better than cure’ अर्थात् उपचार से बचाव अच्छा – वर्तमान परिस्थितियों में तो यह बात सोलह आने सच सिद्ध हो रही है। कोरोना वायरस से बचाव ही सर्वोत्तम उपाय है। इसलिये प्रस्तुत लेख में हम इससे बचाव के एक विज्ञान सम्मत अति सरल किन्तु अत्यन्त प्रभावशाली यौगिक उपाय की चर्चा करेंगे। ध्यान रहे, जो लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं, यह उपाय उनका उपचार करने में भी पूर्ण सहायक है। सबसे बड़ी बात कि यह उपाय मात्र कोरोना वायरस से ही नहीं, किसी भी प्रकार के संक्रमण या रोग से हमारा बचाव करता है।
संक्रामक रोग ही नहीं महामारी है कोविड-19
कोविड-19 (कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण) ने आज पूरे विश्व में एक महामारी का रूप ले लिया है। न केवल संक्रमित रोगियों की संख्या बढ़ रही है बल्कि मृत्यु दर भी बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है। इसकी निश्चित औषधि की खोज में सभी देश लगे हुये हैं किन्तु सत्य यह है कि किसी भी औषधि के प्रयोग, परीक्षण, स्वीकरण और उत्पादन की एक लम्बी प्रक्रिया है, इसमें एक लम्बा समय लग सकता है। 2003 में सार्स वायरस की वैक्सीन के आने में लगभग 20 महीने का समय लगा था। दूसरी जरूरी बात, औषधियों से उपचार भले ही किया जाता हो लेकिन उनसे पूरा बचाव संभव नहीं है क्योंकि वायरस प्रायः नष्ट नहीं होते, बस प्रतिकूल परिस्थितियों में दब जाते हैं और अनुकूल परिस्थिति आते ही फिर से धावा बोलते हैं। फ्लू का वायरस प्रतिवर्ष ठंडे मौसम में धावा बोलता है और अनेक औषधियों तथा वैक्सीन होने के बावजूद प्रायः 20,000 से 80,000 लोग हर साल इसके कारण मृत्यु के मुख में समा जाते हैं। वैसे भी वैक्सीन आदि का प्रभाव भी एक सीमित काल के लिये ही होता है, जैसे कि फ्लू की वैक्सीन का प्रभाव मात्र छः महीने ही रहता है और इन्फ्लूएंजा होने का खतरा फिर भी बना रहता है। समस्या इतनी ही नहीं है, वर्तमान परिस्थिति की बात करें तो कोरोना से एक बार ठीक हो चुके लोगों में दुबारा से संक्रमण देखने में आ रहा है। इसलिये इस समय हमें औषधि की प्रतीक्षा करने की बजाय अपने बचाव के बारे में सोचना होगा।
विश्वास कीजिये, यह इतना कठिन नहीं है। यह मानव शरीर भगवान की अद्भुत कारीगरी है, सर्व समर्थ है। मानव तन जितना दिखता है, उतना ही नहीं है बल्कि इसके भीतर अनेक शक्तियाँ विद्यमान हैं। सबसे बड़ी शक्ति तो मानव मन में है, यह मन ही तन को भी नियन्त्रित करता है। बस हमें अपने तन-मन की सामर्थ्य को, इनकी क्षमता को पहचानना होगा, जगाना होगा। इसी का नाम तो योग विज्ञान है जो हमें मात्र रोगमुक्ति नहीं बल्कि सच्चा और सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करता है। इस योग विज्ञान की ही हम चर्चा करने वाले हैं।
चर्चा आरम्भ करने से पहले, इस बात को कृपया स्पष्ट रूप से समझ लिया जाए कि यहाँ दिये गए उपाय एवं सुझाव, सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों (जैसे सामाजिक दूरी-social distancing, बार-बार हाथ धोना, मास्क पहनना, बिना जरूरी काम घर से न निकलना इत्यादि), सुझावों तथा लक्षण मिलने पर रोग की जाँच एवं रोग होने की स्थिति में आवश्यक मेडिकल उपचार के स्थान पर नहीं बल्कि उनके साथ-साथ प्रयोग में लाये जाने चाहिए।
तो चर्चा आरंभ करते हुये, सर्वप्रथम हम यह देखेंगे कि वैज्ञानिक जगत में उपलब्ध सिद्धांतों और उपायों का वर्तमान परिस्थिति में क्या योगदान है।
विज्ञान जगत हमारी क्या सहायता कर सकता है?
विज्ञान की थोड़ी भी जानकारी रखने वाले इतना तो जानते ही हैं कि वायरस कोई भी हो, यह हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) पर हमला करता है। यदि हमारा यह तंत्र सतर्क और सशक्त हो तो वायरस कुछ नहीं कर पाता। किसी भी वायरस या हानिकारक बैक्टीरिया से बचाने के लिये जो वैक्सीन बनायी जाती है, वह भी तो शरीर के इस सुरक्षा तंत्र का ही सहारा लेती है। वस्तुतः वैक्सीन के रूप में वह वायरस या बैक्टीरिया (antigen) ही शरीर में भेजा जाता है लेकिन उसे लैब में इस तरह तैयार किया जाता है कि शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र उसे तुरंत पहचान लेता है और उसका तोड़ (antibody) बना लेता है। इस पहचान को शरीर याद भी रखता है और फिर भविष्य में जब भी वह वायरस या बैक्टीरिया दुबारा शरीर पर आक्रमण करता है तो शरीर झटपट उसे पकड़ लेता है और फैलने नहीं देता। इसलिये, अब हम अन्य बातों के विस्तार में न जा करके मुख्य रूप से इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि शरीर के रोग प्रतिरोधी तंत्र को सुदृढ़ कैसे करें।
विज्ञान के अनुसार बाहर से आने वाले रोगों तथा संक्रमणों से लड़ने के लिये शरीर में मुख्य रूप से जिम्मेदार टी तथा बी कोशिकाओं (T & B Lymphocytes) तथा श्वेत रक्त कोशाओं (WBC) पर सबसे अधिक एवं शीघ्र प्रभाव विटामिन-डी का पड़ता है। विभिन्न खोजों से यह सिद्ध हो चुका है कि विटामिन-डी की कमी का सीधा सम्बन्ध अनेक प्रकार के रोगों से है। विशेष रूप से प्रतिरक्षा तंत्र संबंधी रोगों (Autoimmune diseases जैसे कि IBD, MS, Type 1 Diabetes आदि) में विटामिन डी का स्तर बहुत महत्वपूर्ण है।
यह तो सभी जानते ही हैं, विटामिन-डी की प्राप्ति का मुख्य साधन सूर्य की किरणें हैं। यद्यपि विटामिन डी सप्लीमेंट भी बाजार में उपलब्ध हैं किन्तु उनके लाभ के साथ अनेक साईड इफेक्ट्स भी होते हैं, जबकि सूर्य किरणों से प्राप्त विटामिन डी पूरी तरह दोषमुक्त है। नयी खोजों के अनुसार तो सूर्य किरणों से होने वाले स्वास्थ्य लाभ में विटामिन डी के अलावा सूर्य किरणों में उपस्थित पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) आदि का भी बहुत योगदान है। पिछले कुछ समय से सूर्य किरणों के स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर बहुत खोजें हो रही हैं और उन सभी के बहुत ही उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त हुये हैं। अनेक असाध्य रोगों के उपचार में सूर्य किरणों के बहुत लाभदायक परिणाम प्राप्त हुये हैं। इस विषय पर शोधपूर्वक अनेक पुस्तकें डॉक्टरों और वैज्ञानिकों द्वारा लिखी गई हैं, जिनमें डा. जेकब लिबरमैन की Light: Medicine of the Future, रिचर्ड हॉबडे की The Light Revolution, डा. माइकल हॉलिक की The UV Advanyage तथा डा. मार्क सोरेनसन की Embrace The Sun आदि पुस्तकें उल्लेखनीय हैं, जिनमें हजारों वैज्ञानिक शोध पत्रों का विवरण भी दिया गया है। इन सबके अनुसार तन के साथ मन को भी स्वस्थ रखने के लिये (डिप्रैशन आदि मानसिक समस्याओं में भी) सूर्य किरणें केवल लाभदायक ही नहीं बल्कि आवश्यक हैं।
अभी-अभी समाचार पत्रों में यह सूचना प्रकाशित हुई है कि अमेरिका के विज्ञान तथा तकनीकी सलाहकार विलियम ब्रायन ने यह बयान दिया है कि उनके वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि सूर्य किरणें कोरोना वायरस का शीघ्र खात्मा करने में समर्थ हैं। इस प्रकार यह तो स्पष्ट ही है कि आधुनिक विज्ञान की दृष्टि में सूर्य का प्रकाश सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए और विशेष रूप से कोरोना संकट के निदान के लिये बहुत महत्वपूर्ण है किन्तु समस्या यह है कि आधुनिक विज्ञान के पास सूर्य किरणों को ग्रहण करने का कोई समुचित साधन नहीं है।
योग एवं आयुर्वेद के सिद्धान्त तथा उपाय
अब बात करें योग और आयुर्वेद अर्थात् भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान की। निश्चित रूप से उनके अनुसार भी सूर्य किरणें रोगनाशक और स्वास्थ्यवर्धक हैं। योग एवं आयुर्वेद के अनुसार रोगों का मुख्य कारण है शरीर में अग्नि या तेजस तत्व (अथवा जीवनी शक्ति) की कमी। इसका स्रोत तो शरीर के भीतर ही है किन्तु जाग्रत अवस्था में मन की बहिर्मुखता के कारण हम इससे सीधा सम्बन्ध नहीं बना पाते। निद्रा के समय हमारा इस शक्ति स्रोत से मेल होता है और इसीलिये सोकर उठने के बाद हमारा शरीर तरोताजा एवं स्वस्थ प्रतीत होता है; शरीर में कैसा भी रोग या कष्ट हो अथवा मानसिक परेशानी हो तो भी सोने से आराम मिलता है; दिल का दौरा पड़ने पर भी जो दवाईयाँ या इंजैक्शन दिये जाते हैं, वह भी शरीर की पेशियों-नाड़ियों को ढीला करके नींद में ही ले जाते हैं; किन्तु सारा समय तो कोई सोया नहीं रह सकता और ऊपर से आजकल की भागदौड़ के जीवन में प्रायः नींद भी गहरी नहीं आती, मन की चंचलता बनी ही रहती है।
आयुर्वेद में प्रायः शरीर को सभी रोगों से मुक्त करके युवा (ऊर्जा और शक्ति सम्पन्न एवं सजग) बनाने के लिये कायाकल्प का विधान है। यह दो प्रकार से होता है –
एक विधि में- छः महीने के लिये एक कुटिया में बंद होकर, अति सूक्ष्म आहार लेते हुये और पूरी तरह से इन्द्रिय संयम करते हुये विशेष औषधियों का सेवन करना होता है। वर्तमान युग में यह असम्भव सा ही है क्योंकि एक तो बिना किसी बाह्य सम्पर्क, बिना किसी टी-वी- या इंटरनेट के छः महीने एकांत में रहना, ऊपर से आहार भी न के बराबर; और सबसे बढ़कर इन औषधियों से शरीर में इतनी गर्मी एवं जलन पैदा होती है जो (बिना कठिन एवं गम्भीर योग साधनाओं का सहारा लिये) किसी के लिये भी सहन करना बहुत कठिन है।
दूसरी विधि है- आतपातप अर्थात् सूर्य किरणों का सेवन। इसमें भी कम से कम छः महीने का समय देना ही होता है तथा इसमें भी आहार संयम और मन की अंतर्मुखता का विशेष योगदान है।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार भी सूर्य किरणें समस्त रोगों का नाश करके शरीर को स्वस्थ एवं शक्ति संपन्न करने में सक्षम हैं यह अलग बात है कि उनकी विधि बहुत कठिन और समयसाध्य है।
योग का सिद्धान्त भी कहता है ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’ अर्थात् आरोग्य की प्रार्थना भगवान भास्कर या सूर्यदेव से करो क्योंकि वहीं आरोग्य प्रदाता हैं। प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों की मुख्य साधना त्रिकाल संध्या थी, जिसमें वह सूर्य के सम्मुख बैठकर विशेष विधि से ध्यान करते थे। ऋग्वेद और अथर्ववेद में सूर्य किरणों के सेवन से जीवनी शक्ति की प्राप्ति एवं अनेक रोगों के निदान का वर्णन किया गया है। वस्तुतः समस्त योग साधनाओं का सार, चाहे वह हठयोग हो या राजयोग, ध्यान योग हो या ज्ञान योग, सभी का लक्ष्य है शरीर के भीतर अग्नि (तेजस) तत्त्व प्रचण्ड करके शरीर की जड़ता समाप्त करना और सुषुम्ना पथ को खोलकर मस्तक में केन्द्रित चैतन्य तत्त्व का पूरे शरीर में संचार करना। इसी को प्रचलित भाषा में कुण्डलिनी शक्ति का जागरण भी कहते हैं। इन योग साधनाओं का साक्षात् फल है- रोग तथा बुढ़ापे से मुक्त अलौकिक शक्ति से संपन्न शरीर।
उपरोक्त चर्चा से एक बात तो स्पष्ट है कि आधुनिक विज्ञान, आयुर्वेद एवं योग पद्धतियाँ, यह सभी एक बिन्दु पर तो सहमत हैं कि सूर्य का प्रकाश हमारे स्वास्थ्य के लिए न केवल लाभकारी है अपितु आवश्यक भी है। यह भी स्पष्ट है कि सूर्य किरणें विशेष रूप से हमारे प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं और मात्र रोगों एवं संक्रमण से बचाने के लिये ही नहीं बल्कि उन्हें दूर करने में भी पूरी उपयोगी हैं।
अब समस्या बस इतनी ही है कि, आयुर्वेद की विधि बहुत कठिन तथा दीर्घ समय साध्य है जबकि आधुनिक विज्ञान के पास सूर्य किरणों के सेवन का कोई पूरी तरह से सुरक्षित उपाय नहीं है। वह तो केवल सूर्य स्नान (sun bath) को ही जानते और प्रचारित करते हैं किन्तु उसके लाभ बहुत सीमित हैं। अधिक सूर्य स्नान तो घातक भी हो सकता है। (कुछ लोग तो डरते हैं कि अधिक सूर्य सेवन से त्वचा का कैंसर या अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं किन्तु इन दावों की सच्चाई जानने के लिये अभी और शोध किया जा रहा है क्योंकि यह पहले ही प्रमाणित हो चुका है कि विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े रोगों के साथ-साथ 16 प्रकार के कैंसर में भी सूर्य किरणों से लाभ ही होता है।)
सामान्य योगासन तथा प्राणायाम भी शरीर को स्वस्थ रखने में तो पूरी मदद करते हैं किन्तु रोगों को दूर करने और विशेष रूप से विषाणु संक्रमण आदि में शीघ्र परिणाम नहीं दिला सकते। दूसरी बात यह है कि आजकल योग भी शारीरिक व्यायाम के रूप में ही किया जाता है, जिससे कि मन बहिर्मुख ही बना रहता है। आज विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि रोगों का कारण तन के साथ मन में भी होता है। आयुर्वेद का तो सिद्धान्त ही है कि रोग सबसे पहले मन में प्रवेश करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य लाभ में तन के साथ मन का योगदान स्वीकारने के कारण ही स्वस्थ जीवन के लिये यह 5 सूत्र दिये हैं – 1. क्रियाशील रहो, 2. पौष्टिक आहार खाओ, 3. धूम्रपान बंद करो, 4. नियमित ध्यान करो, 5. अच्छी पुस्तकें पढ़ो। पौष्टिक आहार तथा क्रियाशीलता मुख्य रूप से शरीर की शक्ति बढ़ाने के लिये हैं और ध्यान तथा स्वाध्याय मन को अंतर्मुख बनाने के लिये, जबकि धूम्रपान तो स्वास्थ्य के लिये सीधा ही हानिकारक है। फिर भी WHO के यह सूत्र सामान्य स्वस्थ जीवन बिताने के लिये हैं, पहले से आ चुके रोग या संक्रमण को दूर करने के लिये नहीं।
ध्यान के द्वारा भी मन को अन्तर्मुख करने का प्रयास किया जाता है किन्तु वर्तमान भागदौड़ भरी बहिर्मुखी जीवनशैली में वह इतना सरल नहीं है। इसीलिये आजकल तो ध्यान के नाम पर मुख्यतः शिथिलीकरण -relaxation- ही कराया जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि शक्ति का स्रोत तो हमारे भीतर ही है किन्तु मन की बहिर्मुखता और गलत जीवनशैली के कारण उसके साथ हमारा सम्बन्ध पहले ही क्षीण हो चुका है अर्थात् हमारी जीवनी शक्ति पहले ही बहुत कमजोर हो चुकी है। इसलिये अब हमें एक ऐसा सशक्त उपाय चाहिये जो न केवल हमें आन्तरिक शक्ति स्रोत से जोड़ दे बल्कि हमारी जीवनी शक्ति को भी बढ़ाये।
विज्ञान सम्मत एक सरल एवं सशक्त यौगिक उपाय – सिद्धान्त तथा विधि
इन सब बातों को देखते हुये वर्ष 2003 में महायोगी स्वामी बुद्धपुरी जी महाराज द्वारा अनेक प्रयोगों एवं परीक्षणों के आधार पर वर्तमान युग के लिये सूर्य ध्यान की एक विशेष विधि का आविष्कार किया गया और इसका नाम रखा गया ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’। तब से अनेक शिविरों के माध्यम से देश-विदेश के लाखों लोग इस सूर्य क्रिया योग के द्वारा अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों से छुटकारा पाकर स्वस्थ जीवन बिता रहे हैं। यह साधना सभी रोगों में लाभ करती है क्योंकि यह सीधे ही शरीर की जीवनी शक्ति, सजगता तथा मन की अन्तर्मुखता को बढ़ाती है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अस्थमा, अनिद्रा, डिप्रैशन, पेट के रोग, मोटापा, गठिया तथा जोड़ों के दर्द, सोरायसिस, कैंसर जैसे अनेक रोगों में लाभ के साथ एड्स, चिकन गुनिया, डेंगू जैसे संक्रमण से फैलने वाले रोगों में भी इसके बहुत लाभकारी और शीघ्र परिणाम देखने को मिले हैं। इसीलिये कोरोना वायरस को भी मात देने के लिये इस सूर्य क्रिया योग के प्रयोग के प्रति हम बहुत आशावान हैं।
इस साधना का मूल सिद्धान्त है – ‘यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे’ अर्थात् जो कुछ भी ब्रह्माण्ड में है, वह बीज रूप में पिण्ड अर्थात् शरीर में भी है। जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में हमारी पृथ्वी सौर मण्डल का ही एक हिस्सा है और सूर्य इस सौर मण्डल की नाभि अर्थात् में स्थित होकर इन सभी को ऊर्जा, गति और शक्ति देता है। इसी प्रकार हमारे शरीर में नाभि कुण्ड में सूर्य है, जो भोजन को पचाने के साथ-साथ हमें गति तथा शक्ति देता है। शरीर में रोग, जड़ता, शक्तिहीनता का कारण है कि अभी अन्दर का सूर्य पूरा जागृत नहीं है। यदि हम बाहर के प्रचण्ड सूर्य का सहयोग लेकर भीतर के सूर्य को जागृत कर लें तो हमारे सारे रोग, कष्ट, कमजोरी दूर हो जायेंगे और इतना ही नहीं शरीर के भीतर का सुषुम्ना मार्ग खोलकर कूटस्थ परमात्मा से मेल भी कर पायेंगे। इस शक्ति जागरण और परमात्म मिलन की साधना का ही नाम है, सूर्य क्रिया योग।
सूर्य क्रिया योग की एक विशेष विधि है, जिसमें सुबह-शाम सूर्य के सम्मुख विशेष मंत्र एवं मुद्राओं के साथ सूर्यदेव का ध्यान किया जाता है, उसे आप शब्द सुरति संगम आश्रम, मलके, मोगा से या किसी जानकार से सीख सकते हैं। फिर भी अभी अपने घरों में प्रारम्भ करने के लिये एक सरल विधि यहाँ बतायी जा रही है- सुबह सूर्योदय से 30-45 मिनट बाद और शाम को सूर्यास्त से 45-60 मिनट पहले सूर्य के सम्मुख बैठकर या खड़े होकर आधे घण्टे के लिये यह साधना करनी है। इसके लिये आँखों को बन्द करके सूर्य से सीधे (सूर्य के साथ 90 डिग्री का कोण बनाते हुये) जोड़ लें। अब बन्द आँखों में प्रवेश कर रहे सूर्य के सुनहरे प्रकाश को पूरे शरीर में फैलाने की धारणा करें। साथ में मन को अन्तर्मुख करने के लिये और सूर्यों के भी सूर्य परमात्मा की शक्ति से जोड़ने के लिये अपने धर्म या परम्परा के अनुसार गायत्री मंत्र, गुरुमंत्र या कोई और मंत्र अथवा गुरबाणी की कोई तुक या कुरान, बाईबल आदि अपने धर्मग्रन्थ से कोई प्रार्थना लेकर श्रद्धा पूर्वक गाते रहें। 20-25 मिनट इस प्रकार ध्यान करने के बाद 5-10 मिनट का शवासन अवश्य करें किन्तु पेट के बल लेट कर क्योंकि एक तो हमारे फेफड़े पीठ की ओर होते हैं, पेट के बल लेटने से श्वास सहज चलेगा; और दूसरी बात शरीर में शक्ति का संचार करने वाला सूक्ष्म सुषुम्ना मार्ग भी रीढ़ की हड्डी के साथ स्थित होता है। पेट के बल लेटने से सूर्य से प्राप्त किया गया तेज सहज सुषुम्ना में प्रवेश करता जायेगा और वहाँ से शरीर की सभी नस-नाड़ियों में, सभी अंगों-तन्त्रों में फैलता जायेगा। बस एक ही सावधानी है कि साधना के बीच में आँखें नहीं खोलें। सूर्य क्रिया योग के पहले और बाद में आधे-एक घण्टे तक कुछ खायें-पियें भी नहीं; बस पानी ले सकते हैं। इस प्रकार करने से आपको एक-दो दिन में ही शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति का अनुभव होने लगेगा, पाचन बेहतर हो जायेगा, नींद गहरी हो जायेगी और मन में भी अंतर्मुखता, आत्मविश्वास तथा आनन्द की वृद्धि हो जायेगी। धीरे-धीरे शरीर या मन में जो कोई रोग है, वह दूर होने शुरू हो जायेंगे। मात्र रोग ही नहीं काम-क्रोध आदि मन के विकार भी दूर होने शुरू हो जायेंगे और अन्तर्शक्ति के जागरण से प्यार-करुणा जैसे दैवी गुण पैदा होंगे।
सूर्य स्नान, सूर्य त्राटक, सूर्य नमस्कार की अपेक्षा सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग की विशेषता
जब सूर्य किरणों का सेवन करने की बात आती है तो सबसे पहले मन में सूर्य स्नान (sun bath) का ही विचार आता है। मुख्य रूप से पाश्चात्य देशों में इसका बहुत प्रचार है किन्तु उसके लाभ बहुत सीमित हैं और हानि की सम्भावना अधिक है। अनेक रिपोर्ट बताती हैं कि हम वर्ष अमेरिका में ही 20 से 25 हजार लोग सूर्य स्नान से रोगी होते हैं और शायद इसीलिये सूर्य किरणों के लाभकारी परिणामों से सम्बन्धित हजारों सफल शोधकार्यों के बावजूद वैज्ञानिक अभी स्वास्थ्य लाभ के लिये सूर्य सेवन का खुलकर प्रचार नहीं कर रहे।
दरअसल सूर्य स्नान से होने वाले नुकसान के दो मुख्य कारण है। सूर्य स्नान से होने वाले नुकसान का पहला कारण तो यही है कि हमारे शरीर में सूर्य किरणों को ग्रहण करने का मुख्य द्वार हैं ‘नेत्र’ और उनका प्रयोग सूर्य स्नान में नहीं होता, बल्कि नेत्रों पर तो काला चश्मा तक चढ़ा दिया जाता है; इसके अलावा सूर्य किरणों के शरीर में प्रवेश की बाकी बची सम्भावना त्वचा पर सन स्क्रीन लगाकर खतम कर दी जाती है। दूसरा प्रमुख कारण है, मन की बहिर्मुखता। सूर्य तेज को धारण करने के लिये अन्तर्मुखी मन ही परम साधन है।
सूर्य त्राटक के लाभ भी बहुत सीमित हैं। मुख्यतः नेत्र ज्योति और मन की दृढ़ता में कुछ वृद्धि ही उसका लक्ष्य है। इसमें आँखों को खोलकर सूर्य से जोड़ा जाता है परन्तु अभी आँखों में इतना तेज, इतनी शक्ति न होने के कारण आँखें तथा साथ की मांसपेशियाँ कस जाती हैं और सूर्य तेज को भीतर पूरा प्रवाहित नहीं कर पातीं। अनेक लोगों में तो सूर्य त्राटक के कारण रेटिना में क्षति भी उत्पन्न होते देखी गई है।
सूर्य नमस्कार तो मात्र दस या बारह आसनों का एक व्यवस्थित क्रम है, उसका सूर्य से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। अतः उसकी तो सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग से तुलना ही नहीं की जा सकती।
सारांश यही है कि सूर्य किरणें हमें कोरोना संकट से बचाने और सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ करने में बहुत उपयोगी हैं और उन्हें ग्रहण एवं धारण करने का सबसे सुरक्षित एवं सशक्त उपाय है ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’। लाखों लोगों के अनुभव इसमें प्रमाण हैं। अतः आप भी इसका लाभ उठायें और दूसरों की भी इसके द्वारा सेवा करें।
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