In English
A Handbook to Siddhamrit Surya Kriya Yoga

Siddhamrit Surya Kriya Yoga (SSKYoga) emerged with a huge bang on the scene. Its inventor, Swami Buddh Puri Ji is confident that through it the age-old Gordian knot on the path of Mahayoga can be opened. Using it, it is actually possible for the Divine Consciousness to manifest itself clearly in the body of the practitioner, such that the body too becomes Divine. Such a body, as a side-story would not die, just like Swami Ramalingam’s was.
However, keeping apart those lofty goals SSKYoga has much to offer for a beginner too. Starting from a very accessible level, easy enough to be performed by a child or a great grandfather, it utilizes the life-giving rays of the sun to bring total health to the body and mind of the practitioner. Numerous cases affirming this statement have been registered.
In this Handbook to Siddhamrit Surya Kriya Yoga, you will read about the basic philosophy behind the practice; a detailed look at level 1 of this practice. For SSKYoga practitioners, the section on Frequently Asked Questions would be very useful too. A must-read for anyone exploring avenues for greater health, joy, light, and bliss in everyday life.
Surya Kriya: The Pathway to Immortality

The present book is about ‘Physical Immortality’. This concept has been in vogue from ancient of times. Yet, this is a novel book which resurrects the practical aspects of this concept lost in the whirls of time. Prior to this, such practices had existed, but only within the hearts of ancient adepts. This book is especially compiled from Swami Ji’s writings and published in 2011 for all those people who do not wish to confine within themselves their inherent desire for Immortality and their desire to be free from maladies, old age and death. This book shall bust up many misconceptions and will really inspire a seeker to set foot on the path of Physical Immortality as it discusses not only the philosophy but also the practical aspect in the form of Surya Kriya and associated practices.
Sanjivani Kriya (Esoteric Science of Pranayam)

This book discusses the 1st level of Sanjivani Kriya that revitalizes our body & revivify our mind by upgrading our normal breathing into complete yogic breath. As we progress, pranayama happens in every breath that keeps us connected with the source of life, all the time.
An ultimate & rare creation – Human body [‘Arena of God’s play’]

The whole creation is manifested in the so called mortal physical human form- the body- measuring just a few feet. This manifestation is unique in its own way- obvious, but concealed. Exploration of the esoteric secrets of human form, is the simplest path for exploration of the universe, and beyond. The Mahasadhana of permeating even the grossness and mortality with the nectar of blissful consciousness, is possible only in the human body. This book is a treasure of guidance for the sincere seekers, desirous of venturing on to the supreme path of this most exalted Mahasadhana.
Bon Apetite (Food for Spiritual Evolution)

Man is not a social animal; he is the very salt of divinity. Within man resides secrets galore, waiting to explode. In the ascent of man to a better, higher form, the food that he eats plays a crucial role. Apart from presenting the art, science & philosophy of food, this book asks a central question: Must man switch to a 100% meat free diet? Of Course!
In Hindi & Punjabi
कुण्ड अग्नि शिखा

यह त्रैमासिक पत्रिका हिन्दी एवं पंजाबी में अक्टूबर 2001 से लगातार प्रकाशित हो रही है। इसमें जपुजी साहिब की व्याख्या, सिद्ध सन्तों के साधना जीवन की चर्चा के अलावा गम्भीर साधना रहस्यों को सरल एवं वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। सफल अवं स्वस्थ जीवन जीने के तरीके, प्रेरणादायक बोधकथायें, विभिन्न रोगों के निवारण के उपाय और साधकों की जिज्ञासाओं के समाधान भी इसमें दिये जाते हैं। इसकी सदस्यता 15 वर्ष (रु० 1100), 6 वर्ष (रु० 500), 3 वर्ष (रु० 250), 1 वर्ष (रु० 100) है।

सिद्धामृत सूर्य क्रियायोग

‘सूर्य हमारे जीवन का आधार है’ यह एक अटल सत्य है, जिसे धर्मशास्त्र ही नहीं विज्ञान भी मानता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने सामान्य रोगों में ही नहीं वरन् कैंसर, ओस्टियोपोरोसिस, मल्टीपल स्क्लैरोसिस, पैरालिसिस एवं हृदय रोग जैसी अनेक जटिल समस्याओं तथा डिप्रेशन आदि अनेक मनोरोगों में भी सूर्य किरणों के द्वारा उपचार करने में सफलता प्राप्त की है। आरोग्य के साथ ध्यान-साधना का आधार भी सनातन परम्परा में सूर्य को माना गया है। यह पुस्तक उन प्राचीन सिद्धान्तों तथा नवीन के आधार पर स्वामी जी द्वारा 2003 में विकसित रोग निवारण एवं शक्ति जागरण की सप्त-चरणीय सूर्य साधना के विज्ञान, प्रक्रिया तथा साधना विधि के प्रथम चरण की कुंजी है।
संजीवनी क्रिया (प्राणायाम का प्रामाणिक विज्ञान)

यह तो सभी जानते हैं कि ‘श्वास है तो जीवन है’ और इसीलिये योग का प्रचार होने के बाद से घर-घर में प्राणायाम शुरू हो गया। लेकिन देखा गया है कि अनेक लोगों को इससे लाभ होने के स्थान पर हानि हो जाती है, अनेक प्रकार के कष्ट तथा रोग हो जाते हैं। आश्चर्य की बात है कि प्राणायाम कराने वाले भी रोगी और स्थूलकाय बने हुये हैं जबकि प्राणायाम का लक्षण ही है, शरीर का हल्का और स्फूर्तिवान होना। इसका मूल कारण है- श्वास के विज्ञान का पता न होना। स्वामी जी द्वारा 2005 में विकसित संजीवनी क्रिया हमें उस विज्ञान से परिचित कराती है और अत्यन्त सहज ढंग से, जिसे बच्चा-बूढ़ा-रोगी कोई भी शुरू कर सकता है, हमें अपने शरीर में प्राण का संचार करना सिखाती है। संजीवनी क्रिया के साथ इस पुस्तक में बैठने, खड़े होने तथा चलने की यौगिक विधि और आँख, कान, नाक आदि ज्ञानेन्द्रियों को स्वस्थ रखने वाली अनेक सूक्ष्म क्रियायें के सचित्र वर्णन के साथ-साथ गुह्य स्वर विज्ञान की भी अत्यन्त सरल एवं प्रायोगिक चर्चा की गयी है।
अग्नि क्रिया योग (यज्ञ से कुण्डलिनी जागरण)

अग्नि को देवताओं का मुख कहा गया है; उसके माध्यम से हम किसी भी देवी-देवता तक अपनी प्रार्थना पहुँचा सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। प्रायः सुनते-पढ़ते ही हैं कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि नियमित सन्ध्या एवं यज्ञ करते थे और उसके फल स्वरूप स्वास्थ्य, शान्ति तथा शक्ति से भरपूर दीर्घायु का लाभ करते थे। यज्ञ तो आज भी होते हैं किन्तु करने और करवाने वाले दोनों के न तो शरीर रोगों से पूर्ण मुक्त होते हैं और न ही मन की चञ्चलता मिटती है और न शक्ति लाभ होता है। इसका कारण यह है कि यज्ञदेव से सम्बन्ध नहीं जुड़ता, शरीर के भीतर कुण्डलिनी (योगाग्नि) जागरण नहीं होता। 2008 में स्वामी जी ने शास्त्र प्रमाणों के आधार पर उन प्राचीन सिद्धान्तों को एक नूतन साधना प्रक्रिया के रूप में विकसित किया जिसके द्वारा हम शक्ति-जागरण-पूर्वक यज्ञदेव से सम्बन्ध जोड़कर स्वास्थ्य-शक्ति लाभ कर सकते हैं। इस पुस्तक में वर्णित वह साधना है- अग्नि क्रिया योग।
एक जाग्रत महायोग परम्परा

भारत भूमि ऋषि-मुनियों की भूमि है, किन्तु काल के प्रभाव से प्रायः अधिकांश साधना परम्परायें लुप्त-गुप्त होती जा रही हैं। मानव समाज के उत्थान के लिये सर्वस्व समर्पण तो दूर की बात है, भौतिक चकाचौंध से भरे इस युग में निज मुक्ति का प्रयास करने वाले भी अल्प ही हैं। फिर भी इसी कलियुग से सतयुग का जन्म होना है और इसके लिये कहीं-कहीं सन्त-महापुरुष प्राण-प्रण से युग परिवर्तन की महायोग साधनाओं में जुटे हुये हैं। ऐसी ही एक जाग्रत परम्परा के तीन महायोगियों-मृत्युञ्जयी स्वामी मेवापुरी जी (जिन्होंने जीवित ही गंगा में समाधि ली), युगावतार स्वामी देवपुरी जी ‘काली कम्बलीवाले’ (जिन्होंने सात वर्ष पर्यन्त एक वृक्ष के नीचे भूख-प्यास तथा सर्दी-गर्मी को जीतकर लगातार तपस्या की) और परमहंस स्वामी दयालुपुरी जी (स्वामी जी के गुरु जिन्होंने काशी में न केवल तीन-चार दशकों तक शास्त्रज्ञान की गंगा बहायी बल्कि अपने जीवन को भी शास्त्रमय बना दिया)- के दिव्य साधना जीवन की कुछ झलकियाँ जिज्ञासुओं की प्रेरणार्थ स्वामी जी की लेखनी से प्रगट होकर इस पुस्तक में प्रस्तुत हैं।
श्रीयन्त्र की चमत्कारी साधना और त्रिपुर शिवा पीठम

श्रीयन्त्र साधना को प्रायः अत्यन्त शक्तिशाली किन्तु रहस्यमयी और जटिल माना जाता है। वर्ष 2014 में पुनः हिमालय प्रदेश में एकान्त साधनावास के लिये जाने से पूर्व स्वामी जी ने शब्द सुरति संगम आश्रम मलके में श्री यन्त्र के एक विशाल ध्यान मन्दिर ‘त्रिपुर शिवा पीठम’ की स्थापना करवाई और जन सामान्य को भुक्ति तथा मुक्ति दोनों उपलब्ध करवाने वाली साधना से परिचित करवाया। स्वामी जी ने शास्त्रों में वर्णित श्रीविद्या के रहस्यों को साधना द्वारा प्रत्यक्ष करके अपने अनुभूत ज्ञान को जिज्ञासुओं की प्रेरणा के लिए इस पुस्तक में अत्यन्त सरल एवं सहज रूप में प्रस्तुत किया गया है। श्रीयंत्र-निर्माण तथा उपासना की जटिल विधियों एवं मन्त्रें को भी अत्यन्त रोचक एवं सरल रूप में प्रस्तुत किया है। किसी भी जिज्ञासु साधक के लिये यह एक अनमोल ग्रन्थ है।
अगम्य साधना स्थल: सतोपन्थ

हिमालय की गोद में स्थित बद्रीनाथ धाम से 25 कि.मी. आगे लगभग 14000 फीट की ऊँचाई पर स्थित दिव्य तपोस्थली सतोपन्थ के इतिहास में पहली बार 1996 में 31 साधकों के विशाल दल के साथ स्वामी जी ने एक महीने का साधना शिविर लगाया। इस अभूतपूर्व दुर्गम यात्रा तथा एक मास चली अलौकिक साधना का जीवन्त वर्णन अत्यन्त प्रेरणादायक है। विशेष रूप से एकादशी की मंगलमयी बेला में महाशक्ति विष्णु का साक्षात् रोमांचकारी अवतरण तथा उसके फलस्वरूप हुयी साधकों की अलौकिक स्थिति जिज्ञासुओं के मनों को झकझोर कर रख देती है।
अमृतानुभव

1988 से 1998 के दौरान विभिन्न साधना शिविरों में महायोगी स्वामी बुद्धपुरी जी द्वारा किये गये जपयज्ञ सम्बन्धी प्रवचनों का यह अनमोल संग्रह किसी भी जिज्ञासु के लिये अत्यन्त उपकारी है। इस पुस्तक में नाम की महिमा, नामजप द्वारा शक्ति-जागरण और जप की विभिन्न विधियों तथा स्तरों का गूढ़ विवेचन युक्तियों और शास्त्र प्रमाणों के साथ अनुभवपूर्ण इतनी सरल भाषा में दिया गया है कि कोई भी साधक इनसे सहज ही प्रेरणा और मार्गदर्शन ले सकता है।
साधना सूत्र

यथा नाम तथा गुण के आधार पर इस लघु पुस्तिका में 1988 से 1998 के दौरान विभिन्न साधना शिविरों में स्वामी जी के प्रवचनों से साधना सम्बन्धी प्रायोगिक सूत्रें का संकलन किया गया है। जिज्ञासुजन निस्संदेह इन सूत्रें का प्रयोग करके अपने जीवन को सुखी, स्वस्थ तथा आध्यात्मिक रूप से सशक्त एवं प्रगतिशील बना सकते हैं।
बोध कथायें

कथा-कहानियाँ मात्र बाल-मनोरंजन का साधन नहीं वरन् सफल जीवन की प्रेरणा, मार्गदर्शन, आत्मविश्वास एवं चरित्र निर्माण का आधार हैं। चिरकाल से ऋषि-मुनि तथा संत-महापुरुष शास्त्रों के गम्भीर रहस्यों को रोचक कथाओं के माध्यम से जन सामान्य में प्रचारित करते आये हैं। इसी परम्परा का निर्वाह करते हुये स्वामी जी कुण्ड-अग्नि-शिखा पत्रिका में रोचक कथाओं के माध्यम से जिज्ञासुओं को निज शक्ति जागरण की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन देते हैं। 2001 से लेकर 2008 तक प्रकाशित इन बोध-कथाओं का संकलन इस पुस्तक में किया गया है।
अकाल पथ (हिन्दी व पंजाबी)

परम पुरुष परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग आम तौर पर बहुत कठिन और लम्बा माना जाता है लेकिन ‘गुरबानी’ के प्रकाश में यह अकाल पथ इतना आसान और सरल कैसे हो सकता है, जन्म-जन्मान्तरों का मार्ग एक ही जन्म में तथा द्रुत गति से कैसे तय किया जा सकता है, इसकी बहुत ही रोचक और प्रामाणिक चर्चा (1998 में मूलतः पंजाबी में लिखी गई) इस पुस्तक में स्वामी जी द्वारा की गयी है।
ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦਾ ਪਥ ਆਮਤੌਰ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਔਖਾ ਤੇ ਲੰਬਾ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਲੇਕਿਨ ਗੁਰਬਾਣੀ ਦੇ ਚਾਨਣ ਵਿੱਚ ਇਹ ਅਕਾਲ ਪਥ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੌਖਾ ਅਤੇ ਸਰਲ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਜਨਮਾਂ-ਜਨਮਾਂ ਦਾ ਰਸਤਾ ਇੱਕ ਹੀ ਜਨਮ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਛੇਤੀ ਤੋਂ ਛੇਤੀ ਕਿਵੇਂ ਤੈਅ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਇਸਦੀ ਬਹੁਤ ਰੋਚਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਮਾਣਿਕ ਚਰਚਾ ਇਸ ਪੁਸਤਕ ਵਿੱਚ ਸਵਾਮੀ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ।

सुदुर्लभ मानव तन (हिन्दी व पंजाबी)

साढ़े तीन हाथ के मानव पिण्ड में, गुप्त-प्रकट रूप में सारा ब्रह्माण्ड ही समाया हुआ है। यदि ब्रह्माण्ड के रहस्यों की खोज करनी है तो मानव पिण्ड के रहस्यों की खोज ही सीधा पथ है। दुर्लभ मानव तन को, परमेश्वरी महाशक्ति की क्रीड़ास्थली बनाकर, मर्त्यलोक को ही सत्यलोक, आनन्दधाम में रूपान्तरित करने की महासाधना के इस सरल संक्षिप्त विवरण से जिज्ञासु सुधीजन स्वानुभव-आधारित क्रमानुसार-वर्णित स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।

कलियुग सर्वश्रेष्ठ है

सृष्टि के विकास क्रम में चार युगों का चक्र चलता है—सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग। प्रत्येक युग में धर्म का कुछ ह्रास होते-होते कलियुग में अधर्म अपने चरम पर पहुँच जाता है। कलियुग के बाद सतयुग का प्रादुर्भाव होता है, पर कैसे? क्या रहस्य है? अधर्म की वृद्धि से एकदम धर्मयुक्त सतयुग का कैसे प्रादुर्भाव होता है? इसमें क्या रहस्य है? कौन सा ईश्वरीय विधान छुपा हुआ है और उसका कलियुग में रहते हुए ही किन साधनाओं द्वारा प्रकट होना संभव है? शास्त्र कहते हैं कि कलियुग के बाद पुनः धर्मयुग अर्थात् सतयुग आएगा ही। इतना ही नहीं, महाभारत तथा अनेक पुराणों में लिखा है कि कलियुग सर्वश्रेष्ठ है। यह पुस्तक एक ओर शास्त्रों के इन गंभीर रहस्यों को अत्यंत सरल भाषा में और उपयुक्त प्रमाणों तथा युक्तियों के माध्यम से स्पष्ट करती है तो दूसरी ओर बताती है कि कलियुग के अवगुणों से कैसे बचना है और गुणों को कैसे धारण करना है? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र—इन वर्णों का क्या महत्त्व है? जीवन का लक्ष्य क्या है और उसकी प्राप्ति हेतु किन स्तरों को पार करना होता है? धर्म का वास्तविक स्वरूप क्या है? उत्तरोत्तर धर्म की व्यापकता में साधक की चेतना का प्रवेश कैसे संभव है?
पत्रालोक

प्रायः ग्रहस्थ साधकों के लिये दीर्घकालीन पर्यन्त गुरुचरणों में निवास अथवा बार-बार मिलन सम्भव नहीं होता किन्तु बिना मार्गदर्शन के साधन पथ पर बढ़ना भी सम्भव नहीं होता। मोबाइल फ़ोन और इन्टरनेट के अविष्कार से पूर्व यह दूरी पत्रों के माध्यम से मिटाई जाती थी। वर्ष 2000 से पूर्व ऐसे ही कुछ साधकों के जिज्ञासा भरे पत्रों के महायोगी स्वामी बुद्धपुरी जी द्वारा लिखे गये कृपापूर्ण उत्तरों को सर्वसामान्य के मार्गदर्शन हेतु इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है।
श्री गुरुदेव पत्रावली


महाराज जी के गुरु स्वामी दयालुपुरी जी के मार्गदर्शक दुर्लभ पत्रों का संग्रह भी दो भागों में पत्रावली के नाम से उपलब्ध है।
श्री गुरुदेव चरितावली

सन्तों का चरित्र सदा ही भक्तों को सन्मार्ग पर चलाने में सहायक होता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्वामी दयालुपुरी जी द्वारा अत्यन्त मनोहारी भाषा एवं अलंकारिक शैली में रचित प्रभु कम्बलीवाले का जीवन चरित प्रस्तुत किया गया।
ज्ञानामृत (काव्यग्रन्थ)

जब तन और मन पूरी तरह प्रभु की भक्ति-प्रेम में रंगे जाते हैं तो दिव्य प्रेमरस का दरिया स्वाभाविक ही वाणी के माध्यम से छलकने लगता है। 1991-1992 में बद्रीनाथ धाम में गुफावास के समय प्रभु की ऐसी ही कृपा स्वामी जी पर हुयी। सेवा, जप-तप, वैराग्य, विवेक आदि के द्वारा सम्पूर्ण जीवन को साधनामय बनाने के स्वर्णिम सूत्र कविताओं एवं गीतों के रूप में उनकी वाणी से प्रगट हुये। इस पुस्तक में उन ज्ञानप्रदायक सूत्रों का ही संकलन है।
ਭਜਨਾਮ੍ਰਿਤ
1990 ਦੇ ਦਹਾਕੇ ਦੌਰਾਨ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਸਾਧਨਾ ਦੀ ਮਸਤੀ ਵਿਚ ਜੰਗਲਾਂ-ਪਹਾੜਾਂ ‘ਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਸਵਾਮੀ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲਿਖੇ ਗਏ ਚਾਲੀ ਭਜਨਾਂ ਦਾ ਸੰਗ੍ਰਹਿ ਇਸ ਪੁਸਤਕ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ, ਜਿਹੜੇ ਸਾਧਕਾਂ ਨੂੰ ਅੰਦਰ ਦੇ ਰਸਤੇ ‘ਤੇ ਚੱਲਣ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ।

ਚਿੰਗਾਰ ਤੋਂ ਬ੍ਰਹਮ ਜੋਤਿ
ਦਸ ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਸਾਧਨਾ ਦੇ ਸ਼ਿਵਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਾਧਕਾਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਸਾਧਨਾ ਕਰਵਾਉਂਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਅਤੇ ਅਨੁਭਵਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖ-ਸਮਝ ਕੇ 1999-2000 ਵਿੱਚ ਸਵਾਮੀ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਗ੍ਰੰਥ ਲਿਖਿਆ। 905 ਪੰਨਿਆਂ ਦੇ ਇਸ ਗ੍ਰੰਥ ਨੂੰ ਅਧਿਆਤਮ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਕੋਸ਼ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਵਿੱਚ ਗੁਰਬਾਣੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸ਼ਾਸਤਰਾਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਵਿਗਿਆਨ ਅਤੇ ਯੂਕਤੀਆਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਮਨੁੱਖ ਜੀਵਨ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨੇ, ਬ੍ਰਹਮ ਦੇ ਸਰੂਪ, ਮੋਖ ਦੇ ਸਰੂਪ, ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਰਚਨਾ ਦੇ ਰਹੱਸ , ਮਨੁੱਖ ਸਰੀਰ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ, ਸਾਧਨਾ ਦੇ ਰਸਤੇ ਦੀ ਪਹਿਚਾਨ, ਗੁਰੂ ਦੀ ਲੋੜ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਸਰੂਪ ਦੀ ਚਰਚਾ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਸਤਿਸੰਗ, ਕੀਰਤਨ, ਆਸਨ, ਪ੍ਰਾਣਾਯਾਮ, ਜਪ, ਨਾਦ ਅਨੁਸੰਧਾਨ, ਧਿਆਨ, ਸਮਾਧੀ, ਯੋਗ ਨਿਦ੍ਰਾ ਆਦਿ ਪਰਮਾਰਥ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵੀ ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਸਾਧਨਾ ਪਥ ਦੇ ਵਿਘਨਾਂ ਅਤੇ ਅਨੁਭਵਾਂ ਦੀ ਵੀ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ ਅਤੇ ਅੰਤਿਮ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤ ਅਵਸਥਾ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵੀ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਹੈ।

ਵਿਆਖਿਆ ‘ਸ਼੍ਰੀ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ’ (ਸਾਧਨਾ ਭਾਸ਼)
ਬਹੁਤ ਸਾਲਾਂ ਦੀ ਲੰਮੀ ਉਡੀਕ ਦੇ ਬਾਅਦ ‘ਸ਼੍ਰੀ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ’ ਦੀ ਇਹ ਵਿਆਖਿਆ ‘ਸਾਧਨਾ ਭਾਸ਼’ ਇੱਕ ਗ੍ਰੰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਹੋ ਕੇ, ਗੁਰਸਿੱਖ ਸਾਧਕਾਂ, ਬੁੱਧੀਜੀਵੀਆਂ, ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ’ਚ ਪਹੁੰਚ ਰਹੀ ਹੈ। ਲਗਭਗ ਉਨੀ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਅਖਬਾਰ ‘ਜਗਬਾਣੀ’ ਵਿੱਚ ਹਰ ਮੰਗਲਵਾਰ ਲੜੀਵਾਰ ਇਹ ਵਿਆਖਿਆ ਛਪਦੀ ਰਹੀ ਹੈ। ਜਗਬਾਣੀ ਦੇ ਲੱਖਾਂ ਪਾਠਕਾਂ ਦੀ ਇਹ ਪਹਿਲੀ ਪਸੰਦ ਰਹੀ ਹੈ।
ਸ਼੍ਰੀ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਸ ਵਿਆਖਿਆ ਨੂੰ ‘ਸਾਧਨਾ ਭਾਸ਼’ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਸਾਧਨਾ ਭਾਸ਼ ਦਾ ਸ਼ਬਦੀ ਅਰਥ ਹੈ, ਉਹ ਵਿਆਖਿਆ ਜਿਸ ਰਾਹੀਂ ਸ਼੍ਰੀ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦੀਆਂ ਪਉੜੀਆਂ ਵਿੱਚ ਦੱਸੇ ਗਏ ਉਨ੍ਹਾਂ ਗੁਪਤ-ਪ੍ਰਗਟ ਸਾਧਨਾ ਸੂਤਰਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਆਖਿਆਇਆ ਜਾਵੇ ਕਿ ਇੱਕ ਗੁਰਸਿੱਖ ਸਾਧਕ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੂਤਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਨ, ਪ੍ਰਾਣ ਅਤੇ ਇੰਦਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਉਤਾਰ ਸਕੇ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਜ਼ਮ ਕਰ ਸਕੇ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕਮਿੱਕ ਹੋ ਕੇ ਪਰਮ ਪੁਰਖ ਦਾ ਸਾਖਿਆਤਕਾਰ ਕਰ ਸਕੇ।
ਇਸ ਸਾਧਨਾ ਭਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਜੋ ਕੁਝ ਵੀ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਪ੍ਰਮਾਣਿਤ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਗੁਰਬਾਣੀ ਦੀ ਹੀ ਓਟ ਲਈ ਗਈ ਹੈ।
ਸ਼੍ਰੀ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ‘ਸਾਧਨਾ ਭਾਸ਼’ ਲਿਖਣ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਜਨ ਸਿਰਫ਼ ਇਹ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸਨੂੰ ਪੜ੍ਹਕੇ ਸਰਲ ਤੇ ਸੱਚੇ ਸਾਧਕ ਸਿੱਖ ਪਰਮੇਸ਼ਰ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਸੁਖਮਨਾ ਪਥ ਦੀ ਚੜ੍ਹਾਈ ’ਤੇ ਚੜ੍ਹਨ ਦੀ ਸੇਧ ਅਤੇ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਣ। ਇਸਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ ਕੁਝ ਵੀ ਪ੍ਰਯੋਜਨ ਨਹੀਂ ਹੈ।

डेरा हरिसर – एक परिचय (हिन्दी व पंजाबी)


In Greek
Sun: The gateway to Immortality- A practical course

The present book is about ‘Physical Immortality’. This concept has been in vogue from ancient of times. Yet, this is a novel book which resurrects the practical aspects of this concept lost in the whirls of time. Prior to this, such practices had existed, but only within the hearts of ancient adepts. This book is especially compiled from Swami Ji’s writings and published in 2011 for all those people who do not wish to confine within themselves their inherent desire for Immortality and their desire to be free from maladies, old age and death. This book shall bust up many misconceptions and will really inspire a seeker to set foot on the path of Physical Immortality as it discusses not only the philosophy but also the practical aspect in the form of Surya Kriya and associated practices.